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जून, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

"महेश्वरी की कहानी, दिव्यांशु की जुबानी "

संदीप महेश्वरी का जन्म दिवस :- ‌पब्लिक स्पीकर संदीप महेश्वरी का जन्म 28 सितंबर 1980 को नई दिल्ली, भारत में हुआ था। यह मध्यम वार्गीय परिवार से तालुक रखते थे। संदीप महेश्वरी का शुरुआती जीवन :- ‌एक शांत स्वाभाव के स्कूली बच्चे से लेकर एक पब्लिक स्पीकर होने तक उनका जीवन उथल-पुथल भरा रहा है। ‌ महेश्वरी अपने परिवार की चल रहे एल्युमीनियम व्यवसाय में मदद करना चाहते थे लेकिन उनका व्यवसाय छितरा गया।       Photo courtesy :- Blogmotivation ‌महेश्वरी के परिवारवालों का कहना था की वह व्यवसाय ना करें । लेकिन परिवारवालों ने उनको अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए मजबूर किया। ‌अपने कॉलेज के शुरुआती दौर में, महेश्वरी मॉडलिंग की दुनिया के ठाठ बाट और चकाचौंध से प्रभवित हो गए थे । ‌इन्होंने 19 वर्ष की उम्र में ही मॉडलिंग शुरू कर दी थी लेकिन कुछ परेशानियों के वजह से उन्हें मॉडलिंग का काम त्यागना पड़ा। मॉडलिंग छोड़ने के बाद इन्होंने फिर कुछ अलग करने का सोचा और फोटोग्राफी सीखने में दिलचस्पी दिखाये और साथ-साथ अपनी खुद की मॉडलिंग एजेंसी शुरू करने का फैसला किया। ‌उन्होंने कॉलेज लाइफ के तीसरे वर्ष से अपनी पढ़ाई

सभी को यह काम प्रतिदिन खुले में 20 मिनट जरूर करना चाहिए :- दिव्यांशु

                              जो संभावनाओ को संभव बनाए,                             वही तो योग कहलाए । 

Booker Prize :- "रेत की समाधि" पर बुकर का परचम

" गीतांजलि श्री" को मिला बुकर का सम्मान। "रेत की समाधि" ने लहराया साहित्य की दुनिया में परचम, देश हुआ गीतांजलि से आश्चर्यचकित।  "श्री" ने अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2022 जीत पूरे देश को किया गौरवांवित एवं रचा इतिहास ।  👉 हिंदी साहित्य को प्रथम बार मिली "भारतीय महिला बुकर गीतांजलि "   मौन रहने वाली "गीतांजलि श्री" की आवाज "रेत की समाधि" के द्वारा पूरे दुनिया में गूंज उठी है। "श्री" ने बुकर पुरस्कार जीतने के बाद कहा कि मैने कभी बुकर पुरस्कार जीतने की कल्पना नहीं की थी। कभी सोचा ही नहीं कि मैं यह भी कर सकती हूं। उत्तरप्रदेश के मैनपुरी की रहनेवाली "गीतांजलि श्री" फिलहाल दिल्ली में निवास कर रही हैं।      Photo courtesy :- seepositive.in "गीतांजलि श्री" लंबे समय से हिंदी लेखन में सक्रिय हैं।  "श्री" लगभग तीन दशक से लेखन शैली के लिए काम कर रही थी। 30 वर्ष के तपस्या के उपरांत उनकी पहली उपन्यास "माई" प्रकाशित हुई। इस उपन्यास का अंग्रेजी अनुवाद प्रतिष्ठित "क्रॉसवर्ड पुरस्कार&qu