"गीतांजलि श्री" को मिला बुकर का सम्मान। "रेत की समाधि" ने लहराया साहित्य की दुनिया में परचम, देश हुआ गीतांजलि से आश्चर्यचकित।
- "श्री" ने अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2022 जीत पूरे देश को किया गौरवांवित एवं रचा इतिहास ।
👉 हिंदी साहित्य को प्रथम बार मिली "भारतीय महिला बुकर गीतांजलि "
मौन रहने वाली "गीतांजलि श्री" की आवाज "रेत की समाधि" के द्वारा पूरे दुनिया में गूंज उठी है।
- "श्री" ने बुकर पुरस्कार जीतने के बाद कहा कि मैने कभी बुकर पुरस्कार जीतने की कल्पना नहीं की थी। कभी सोचा ही नहीं कि मैं यह भी कर सकती हूं। उत्तरप्रदेश के मैनपुरी की रहनेवाली "गीतांजलि श्री" फिलहाल दिल्ली में निवास कर रही हैं।
"गीतांजलि श्री" लंबे समय से हिंदी लेखन में सक्रिय हैं।
- "श्री" लगभग तीन दशक से लेखन शैली के लिए काम कर रही थी। 30 वर्ष के तपस्या के उपरांत उनकी पहली उपन्यास "माई" प्रकाशित हुई। इस उपन्यास का अंग्रेजी अनुवाद प्रतिष्ठित "क्रॉसवर्ड पुरस्कार" के लिए भी नामांकित हुआ था।
👉 "रेत की समाधि" की कृति
"रेत की समाधि" पुस्तक अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली भारतीय भाषा की यह पहली पुस्तक बन गई है। इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद "डेजी राकवेल" ने किया है। जिसे "टॉम्ब ऑफ सैंड" के नाम से जानते है।
- इस पुस्तक में भारत के विभाजन से जुड़ी पारिवारिक गाथा है, जो अपने पति की मृत्यु के बाद एक 80 साल की महिला का नकल करती हैं।
- उनके लेखन कला को हिंदी साहित्य में दुर्गम माना जाता है।
- "गीतांजलि श्री" जी की उपन्यास 'रेत की समाधि' विश्व की उन 13 श्रेष्ठ रचित में शामिल था। जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार प्राप्त हुआ।
- यह पुस्तक एक 80 वर्ष की महिला के संदर्भ में एक पारिवारिक कहानी है, जिसे सामना करने के लिए पाकिस्तान की यात्रा करते है।
- किताब की 80 वर्षीय अभिनेत्री माँ, अपने परिवार की बेचैनी के कारण, पाकिस्तान की यात्रा करने पर जोर देती है, साथ ही साथ विभाजन के अपने किशोर अनुभवों का सामना करती है । और एक माँ, एक बेटी होने का क्या मतलब है, इसका पुनर्मूल्यांकन करती है ।
👉 'श्री' का बुकर जीतने की "रेत वाली सफर"
अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार प्रत्येक वर्ष वैसी पुस्तकों को दिया जाता है जो किसी अन्य भाषा से अंग्रेजी में अनुवाद किया हो और UK या IRELAND में प्रकाशित हुई हो ।
- जब पहली बार पुरस्कार की स्थापना की गई थी तो सिर्फ आयरिश, दक्षिण अफ्रीका और बाद में जिम्बाब्वे के लोगों द्वारा लिखे गए उपन्यास ही पुरस्कार प्राप्त करने के काबिल थे।
- 2014 में "टॉम्ब ऑफ सैंड" को अंग्रेजी भाषा के उपन्यास में सम्मिलित कर दिया गया।
- ‘टॉम्ब ऑफ सैंड' छापने वाली अंग्रेज प्रेस थी। यह प्रकाशन समूह अनुवादक डेब्रा स्मिथ ने स्थापित किया था, जो खुद 2016 में अनुवाद के लिए बुकर पुरस्कार जीत चुकी हैं।
- 50 लाख के साहित्यिक पुरस्कार के लिए पांच अन्य उपन्यासों से इसका मुकाबला था, जिसमें 'टॉम्ब ऑफ सैंड' ने बाजी मार ली। पुरस्कार की राशि लेखिका और अनुवादक के बीच विभाजित की जाएगी।
- आखिरकार "बुकर पुरस्कार" विजेता के सूची में भारतीय महिला "गीतांजलि श्री" सर्वश्रेष्ठ रही और उन्हें इस पुरस्कार के लिए काबिल माना गया।
"गीतांजलि श्री" जी को बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकानाएं।
दिव्यांशु
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